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छटपटाहट
जहाँ रहती हों आबादियाँ खंडहरों में मुझे ले चलो उन्हीं हसीन शहरों में । जिस्म की कैद से मैं निजात पा जाता मेरे शहर में तो रव्यालात भी रहते हैं पहरों में । दरिया को आज फिर किसी सैलाब का डर है‚ भूखी मां कल बच्चों सहित डूबी है लहरों में। लोग कहते हैं वो जन्म से अन्धा था फिर रात रात किसे ढूँढता था वो भीड़ के चेहरों में। |
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